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लेखनी कहानी -17-Oct-2022 मकर संक्रांति (भाग 9)


                शीर्षक :-  मकर संक्रांति
     मकर संक्रांति का पर्व हमारे यहाँ 14 जनवरी कं मनाया जाता है । जब सूर्य भगवान एक राशिसे दूसरी रिशि पर जाते है तब इसको संक्रिंति कहा जाता है।
                      इस दिन सूर्य धनु राशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करेंगे. सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में जाते हैं तो इस प्रक्रिया को संक्रांति कहा जाता है. मकर संक्रांति को सभी संक्रांति में अति महत्वपूर्ण माना गया है. मकर संक्रांति को खिचड़ी का पर्व भी कहा जाता है. मकर संक्रांति पर स्नान और दान का विशेष महत्व बताया गया है. त्योहारों के देश भारतवर्ष में हरदिन कोई ना कोई पर्व या व्रत अवश्य मनाया जाता है. आस्था का प्रतीक यह त्यौहार सिर्फ एक परंपरा नहीं है परंतु उन्हें मनाए जाने का प्रामाणिक वैज्ञानिक कारण भी उपलब्ध है. भारत में हर साल जनवरी में मकर सक्रांति (Makar Sankranti) पर्व मनाया जाता है. मकर सक्रांति काे भारत भिन्न-भिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता हैं. जैसे खिचड़ी (बिहार और उत्तर प्रदेश में),  पंजाब मे लोहड़ी, कहा जाता है। लोहडी़ 13 जनवरी को मनाई जाती है।
                 पौष माह के दौरान जब सूर्य देवता धनु राशि को ै मकर राशि में प्रवेश करता हैं. उन दिनों सनातन धर्म में यह पर्व सक्रांति के तौर मनाया जाता है. संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायणी गति प्रारंभ करता है. इसलिए इस पर वह को उत्तरायणी पर्व के नाम से भी जाना जाता है. भगवान शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं और इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं इस दिन जप, तप, ध्यान और धार्मिक क्रियाकलापों का अधिक महत्व होता हैं. अन्य प्रांतों में इसे फसल उत्सव के नाम से भी जाना जाता हैं.

              वैज्ञानिकों की मानें तो पहले सूर्य पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध पर सीधी किरणें डालता है. जिसके कारण उत्तरी गोलार्ध में रात्रि बड़ी और दिन छोटा होता है. इसके कारण सर्द का मौसम भी रहता है. सूर्य पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ना शुरू होता है. जिसके कारण ऋतु भी परिवर्तित होता है और यह कृषकों की फसलों के लिए बेहद ही 
                पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान सूर्य देव अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं. चूँकि शनि मकर राशी के देवता हैं इसी कारन इसे मकर संक्रांति कहा जाता हैं.


           दूसरी कथा के अनुसार   महाभारत युद्ध के योद्धा और कौरवों की सेना के सेनापति गंगापुत्र भीष्म पितामह को इच्छा मुत्यु का वरदान प्राप्त था. अर्जुन के बाण लगाने के बाद उन्होंने इस दिन की महत्ता को जानते हुए अपनी मृत्यु के लिए इस दिन का चयन किया था.

          भीष्म जानते थे कि सूर्य दक्षिणायन होने पर व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त नहीं होता और उसे इस मृत्युलोक में पुनः जन्म लेना पड़ता हैं. महाभारत युद्ध के बाद जब सूर्य उत्तरायण हुआ तभी भीष्म पितामह ने प्राण त्याग दिए. भीष्म के निर्वाण दिवस को भीष्माष्टमी भी कहते हैं.

           एक धार्मिक मान्यता के अनुसार सक्रांति के दिन ही माँ गंगा स्वर्ग के अवतरित होकर रजा भागीरथ के पीछे-पीछे कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई गंगासागर तक पहुँची थी. धरती पर अवतरित होने के बाद राजा भागीरथ ने गंगा के पावन जल से अपने पूर्वजों का तर्पण किया था. इस दिन पर गंगा सागर पर नदी के किनारे भव्य मेले का आयोजन किया जाता हैं.।

         इस तरह  मकर संक्रांति मनाने के बिषय में अनेक कथाऔ का वर्णन आता है।

30 Days Fedtival Competition  हेतु रचना।

नरेश शर्मा "पचौर

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5 Comments

Abeer

27-Oct-2022 02:50 PM

Behtarin rachana

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Pratikhya Priyadarshini

27-Oct-2022 01:19 AM

Bahut khoob 💐👍

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Bahut khoob 💐👍

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